epranali

This is educational blog.

Res

Breaking news

हिंदी कहानी लेबल असलेली पोस्ट दाखवित आहे. सर्व पोस्ट्‍स दर्शवा
हिंदी कहानी लेबल असलेली पोस्ट दाखवित आहे. सर्व पोस्ट्‍स दर्शवा

बुधवार, ५ जानेवारी, २०२२

जानेवारी ०५, २०२२

उपकार का बदला

           उपकार का बदला 


एक सुंदर बन था। उसमें फूलों और फलों से लदे तरह-तरह के वृक्ष थे। उन पर अनेक प्रकार के पक्षी रहते थे। उनका जीवन बहुत आनंदमय था। एक बार देवराज इंद्र उस वन में सैर करने के लिए आए वन की प्राकृतिक शोभा ने उनका मन मोह लिया। अचानक उनकी दृष्टि एक तोते पर पड़ी। वह एक सूखे पेड़ पर बैठा हुआ था। वह बहुत दुखी दिखाई दे रहा था। उसे इस दशा में देखकर इंद्रदेव को आश्चर्य हुआ। उन्होंने तोते से पूछा, "इस हरे-भरे और फलों से संपन्न वन में सभी पक्षी आनंद से रहते हैं। फिर तुम इस सूखे पेड़ पर अकेले और उदास हो कर क्यों बैठे हो ?"

तोते ने उत्तर दिया, ‘‘ हे देवराज, कुछ समय पहले यह वृक्ष भी हरा-भरा और फूलॉ-फलों से लदा हुआ था। इसने बरसों तक मुझे आश्रय दिया और अपने मीठे-मीठे फल खिलाए। इसने आँधी-पानी और तूफान में मुझे सुरक्षा दी। आज यह सूख गया है। क्या मैं बुरे दिनों में इसका साथ छोड़ दूँ? क्या मैं अपने आश्रयदाता का उपकार भूल जाऊँ ?" उस सूखे वृक्ष के प्रति तोते का यह प्रेम देखकर इंद्रदेव बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने उस वृक्ष को फिर से हरा-भरा कर दिया। तोते ने खुश होकर इंद्रदेव का आभार माना। सीख : भलाई करने वाले का उपकार कभी नहीं भूलना चाहिए।

जानेवारी ०५, २०२२

जैसी करनी, वैसी भरनी

             जैसी करनी, वैसी भरनी 


   एक रात चार चोरों ने मिलकर एक सेठ के घर में चोरी को चोरी में उन्हें बहुत सा धन मिला। उस धन का बैटवारा करने के लिए वे जंगल में गए। जंगल में पहुंचने पर चोरों को बहुत जोर की भूख लगी। सुबह होने ही वाली थी। उनमें से दो चोर मिठाई खरीदने के लिए शहर की ओर रवाना हुए। रास्ते में उन दोनों की नीयत बिगड़ गई। उन्होंने सोचा कि जंगल में बैठे हुए दोनों चोरों को मारकर सारा माल हम हजम कर लें। इस इरादे से उन्होंने मिठाई खरीदकर उसमें से कुछ खाई और बाकी बची हुई मिठाई में जहर मिला दिया। इधर जंगल में बैठे दोनों चोरों के मन में भी ऐसा ही बुरा विचार आया। उन्होंने भी शहर से मिठाई खरीदने गए अपने दोनों साथियों को मार डालने की तरकीब सोची। जैसे ही वे दोनों मिठाई लेकर आए. वे हाथ-मुँह धुलाने के बहाने उन्हें कुएँ पर ले गए। मौका पाकर उन्होंने दोनों को कुएँ में ढकेल दिया। दोनों चोर कुएँ में डूबकर मर गए। इसके बाद दोनों चोरों ने पेट भरकर मिठाई खाई। थोड़ी ही देर में मिठाई का जहर उनके सारे शरीर में फैल गया। देखते ही देखते उन दोनों के भी प्राण निकल गए। सीख जो जैसा करता है, उसे वैसा ही फल मिलता है बुरे काम का परिणाम बुरा ही होता है।
जानेवारी ०५, २०२२

कौए की चतुराई

            कौए की चतुराई 


       सरस्वती नदी के किनारे बरगद का एक पेड़ था। उस पर कौए का एक जोड़ा रहता था। पेड़ के पास बिल में एक विषैला साँप रहता था। कौआ कौवी जब आहार की तलाश में बाहर जाते, तब वह बिल कर उनके बच्चों को खा जाता था। इससे कौआ और कौवी दोनों बहुत दुखी थे। लेकिन उस साँप के सामने वे लाचार थे। में जा एक बार चंद्रपुर की राजकुमारी अपनी सखियों और सेवकों के साथ उस नदी पर स्नान करने आई। उसने अपनी अन्य चीजों के साथ अपना सोने का हार भी किनारे पर रख दिया। वह सखियों के साथ स्नान करने के लिए नदी में उत्तरी राजकुमारी के सोने के हार पर कौए की नजर पड़ी। उसे एक युक्ति सूझी। उसने तुरंत हार उठाकर सौंप के बिल के पास रख दिया। राजकुमारी स्नान करके नदी के बाहर आई। अपना स्वर्णहार न पाकर वह चीख पड़ी। उसने अपने सेवकों को बुलाया और हार ढूँढ लाने का आदेश दिया। सेवक हार ढूँढ़ने में लग गए। अचानक वह हार उन्हें साँप के बिल के पास पड़ा दिखाई दिया। सेवकों ने देखा कि हार के पास ही एक विषैला साँप कुंडली मार कर बैठा हुआ है। उन्होंने लाठियों से साँप को मार डाला और हार ले जा कर राजकुमारी कोसौंप दिया। राजकुमारी अपना हार पाकर खुश हो गई। कौआ-कौवी मन ही मन खुश हुए। इस प्रकार कौए ने बड़ी युक्ति से अपने दुश्मन साँप से छुटकारा पा लिया। सीख : जो काम ताकत से नहीं हो सकता, वह बुद्धि या चतुराई से हो सकता है।

जानेवारी ०५, २०२२

ताकत से अक्ल बड़ी

           ताकत से अक्ल बड़ी




एक जंगल में एक सिंह रहता था। वह रोज जंगल में कई जानवरों का शिकार करता था। एक दिन जंगल के पशुओं ने मिलकर उससे प्रार्थना की, "महाराज, आप जंगल में शिकार के लिए न निकला करें। हम प्रतिदिन निश्चित समय पर एक जानवर आपके पास भेज दिया करेंगे। " सिंह ने पशुओं की प्रार्थना स्वीकार कर ली। ताकत से अक्ल बड़ी वादे के अनुसार रोज निश्चित समय पर एक जानवर सिंह के पास आने लगा। एक दिन एक खरगोश की बारी आई। वह अपनी चतुराई के लिए मशहूर था। वह जान बूझकर सिंह के पास देरी से पहुँचा। सिंह को बहुत गुस्सा आया। उसने खरगोश से देर से आने का कारण पूछा। खरगोश ने जवाब दिया, "महाराज, रास्ते में मुझे एक दूसरा सिंह मिल गया था। वह मुझे मारकर खाना चाहता था। उससे मैं जल्दी लौटने का वादा कर आपके पास आया हूँ। यह सुनकर सिंह आपे से बाहर हो गया। वह गरजकर बोला, "चल, मुझे दिखा, कहाँ है वह दूसरा सिंह ? मैं अभी उसका काम तमाम कर देता हूँ। " खरगोश सिंह को एक गहरे कुएँ के पास ले गया और बोला, " महाराज, इसी में छिपा है वह दुष्ट!" सिंह ने कुएँ में झाँका। कुएँ के पानी में उसे अपनी ही परछाईं दिखाई दी। उसी को दूसरा सिंह समझकर वह कुएँ में कूद पड़ा और डूबकर मर गया। खरगोश की जान बच गई। जंगल के सभी जानवरों ने राहत की साँस ली और खरगोश को धन्यवाद दिया। सीख : ताकत से अक्ल बड़ी होती है। जो काम बल से न हो सके, उसे बुद्धि से करना चाहिए।

जानेवारी ०५, २०२२

सिंह और चूहा

                   सिंह और चूहा 



एक जंगल में एक सिंह रहता था। एक दिन वह एक पेड़ की शीतल छाया में सो रहा था। पेड़ के पास ही एक बिल में कुछ चूहे रहते थे। सिंह को सोया हुआ देखकर चूहे बिल में से निकले और उसके शरीर पर दौड़ धूप करने लगे। इससे सिंह की नींद टूट गई। उसे चूहों पर बहुत गुस्सा आया। सिंह के जाग जाने पर चूहे डर के मारे बिल में घुस गए। लेकिन एक चूहा सिंह की पकड़ में आ गया। सिंह का गुस्सा देखकर वह चूहा डर से काँपने लगा। उसने सिंह से कहा, "वनराज, क्षमा कीजिए। अब मैं कभी आपको परेशान नहीं करूंगा। मुझे छोड़ दीजिए। कभी मैं आपके काम आऊँगा। " चूहे की बात सुनकर सिंह को हँसी आ गई। उसने उसे छोड़ दिया। कुछ दिनों बाद एक शिकारी उस जंगल में शिकार करने आया। संयोग से वही सिंह उसके जाल में फँस गया। उसने जाल से छूटने के लिए बहुत प्रयत्न किया, पर वह सफल नहीं हुआ। हताशा और क्रोध के कारण वह जोर जोर से दहाड़ने लगा। उस चूहे ने सिंह की दहाड़ सुनी। वह फौरन सिंह के पास आ पहुँचा। उसने अपने पैने दाँतों से जाल को कुतरकर सिंह को मुक्त कर दिया। सिंह ने उस चूहे का आभार माना। सीख : छोटे-से-छोटे प्राणी को भी तुच्छ नहीं समझना चाहिए। वक्त आने पर छोटा प्राणी भी बड़े काम आ सकता

जानेवारी ०५, २०२२

कुसंगति का फल

        कुसंगति का फल 



देवनगर में गोपालदास नाम के एक सज्जन रहते थे। उनका पुत्र अमित बहुत गुणवान था। पढ़ाई, खेल कूद आदि पर्णा में इह हमेशा आगे रहता था। माता-पिता को अपने पुत्र से बड़ी आशाएँ थीं।

दुर्भाग्य से अमित बुरी संगति में फँस गया। उसको कई बुरी आदतें पड़ गई। पढ़ाई लिखाई के प्रति वह लापरवाह हो गया। पुत्र की यह दुर्दशा देखकर माता-पिता बहुत चिंतित हुए। उन्होंने कई बार अमित को समझाने की कोशिश की, लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ। एक दिन गोपालदासजी को एक तरकीब सूझी। वे बजार से टोकरी भर आम ले आए। साथ में वे एक सड़ा आम भी लाए। बाद में उन्होंने बेटे को बुलाकर कहा " बेटा इन आमों को टोकरी में सँभालकर रख दो और यह सड़ा हुआ आम भी इन आमों के बीच में रख दो कल हम ये आम खाएँगे। टोकरी में सड़ा आम रखवाने का कारण पुत्र समझ नहीं पाया। फिर भी पिता के कहने पर उसने अन्य आमों के बीच वह सड़ा आम भी रख दिया। दूसरे दिन पिता जी ने अमित से कहा, "बेटा, आमवाली यह टोकरी ले आओ। पुत्र आमों की टोकरी ले आया। उसने टोकरी खोलकर देखा तो सभी आम सड़ गए थे। टोकरी से बदबू आ रही थी। अमित ने कहा "पिता जी. इसमें तो बहुत से आम सड़ गए हैं। एक सड़े आम ने और कई आमों को सड़ा दिया है। " गोपालदास ने तुरंत कहा, "हाँ बेटा देखो. एक सड़े आम की संगति से कई आम सड़ गए। फिर तू तो न जाने कितने खराब लड़कों की संगति में रहता है। क्या तेरा जीवन भी इन आमों की तरह बरबाद नहीं हो जाएगा?" पिता जी की बात सुनकर अमित की आँखें खुल गई। उसने अपने पिता जी से क्षमा माँगो उसी दिन से उसने बुरे साथियों का संग छोड़ दिया। सीख बुरी संगति का फल बुरा होता है बुरे साथियों से दूर रहने में ही भलाई है।

जानेवारी ०५, २०२२

लोभ का फल

            लोभ का फल 

             एक व्यापारी था। वह बहुत लोभी था। उसकी कपड़े की कई दुकानें थीं। वह एक आलीशान मकान का मालिक भी था। जमीन खरीद रखी थी। फिर भी उस पर हमेशा धन बढ़ाने की धुन सवार रहती थी। बहुत सारी एक दिन वह बाजार से गुजर रहा था। वहाँ उसने एक आदमी के पास सोने के सिक्के देखे। ऐसे सिक्के उसने पहले कभी देखे थे। उसने उस आदमी के पास जाकर पूछा, " क्यों भाई, ये क्या हैं?'' उस आदमी ने कहा, " ये अशर्फियाँ हैं हुजूर! इनकी कीमत हमेशा बढ़ती रहती है। जिसके पास अशर्फियाँ हों, उसे और कोई संपत्ति रखने की जरूरत नहीं पड़ती।" व्यापारी ने सोचा कि क्यों न ये अशर्फियाँ खरीद ली जाएँ। दुकानें, मकान, जमीन आदि की देखरेख करनी पड़ती है। उन्हें संभालना बहुत झंझट का काम होता है। अशर्फियों को संभालने में किसी तरह की परेशानी नहीं रहेगी। अतः उसने अपनी सभी दुकानें और जमीन आदि बेच डाली। उस धन से उसने अशर्फियाँ खरीद लीं। उन अशर्फियों को व्यापारी ने अपने घर के तहखाने में रख दिया। वह रोज रात को तहखाने में जाकर ये अशर्फियाँ गिनता यह उसका प्रतिदिन का कार्यक्रम बन गया था। एक रात अशर्फियाँ गिनकर वह चिल्ला उठा, “ हाय, इतने दिनों बाद भी मेरी अशर्फियाँ उतनी की उतनी ही हैं। एक भी अशर्फी बढ़ी नहीं है। " उसकी यह आवाज बाहर खड़े एक चोर ने सुन ली। व्यापारी के सो जाने के बाद वह चोर उसके तहखाने में घुस गया और सारी अशर्फियाँ चुराकर ले गया। दूसरे दिन व्यापारी ने तहखाने में जाकर देखा तो उसकी सारी अशर्फियाँ गायब थीं। वह सिर पीटकर रह गया। सीख : अधिक पाने के लालच में आदमी अपना सब कुछ गँवा बैठता है।
जानेवारी ०५, २०२२

शेर और सियार

            शेर और सियार 



        एक जंगल में एक शेर अपने परिवार के साथ रहता था। वह बहुत आलसी और आरामतलब था शेरनी ही शिकार करने जाती थी। एक दिन शेरनी बीमार पड़ गई। उसके बच्चे भूख से छटपटा रहे थे। शेरनी ने शेर से कहा, "तुम कैसे पति और पिता हो? क्या तुम एक दिन भी शिकार पर नहीं जा सकते? तुम्हारे बच्चे भूखे हैं और तुम मंजे से पड़े हो ? धिक्कार है तुम्हारी बहादुरी को। " शेरनी की फटकार सुनकर शेर जोश में आ गया। कुछ ही देर में यह एक बैल का शिकार कर उसे घसीट लाया शेरनी खुश हो गई। बच्चों ने भरपेट भोजन किया। शेर की गुफा के पास ही एक सियार भी अपने परिवार के साथ रहता था। शेर की नकल करके सियार भी आलसी बन कर अपनी गुफा में पड़ा रहता था। सियारिन ही शिकार करने जाती थी। एक दिन रियारिन बीमार पड़ गई। खाने को कुछ न था। उसके बच्चे भी भूखे थे सियारिन ने सियार से कहा, "उस दिन शेरनी बीमार पड़ गई थी, तो शेर एक बैल का शिकार कर लाया था। आज तुम शिकार नहीं करोगे तो बच्चों का पेट कैसे भरेगा?'' सियार ने कहा, "ठीक है, आज तू मेरी बहादुरी देख ! मैं अभी शिकार कर ले आता हूँ। " • सियार शिकार करने निकल गया। रास्ते में उसे भी एक बैल मिला। सियार ने न आव देखा न ताव। वह बैल पर टूट पड़ा। लेकिन बैल ने सियार को अपने सींगों पर उठाकर दूर फेंक दिया। बेचारे सियार की हड्डी पसली नरम हो गई। वह बहुत मुश्किल से अपनी गुफा तक पहुँच पाया। उसकी दुर्दशा देखकर सियारिन को हँसी आ गई। वह बोली" तुम्हें तो मुर्गे या खरगोश का शिकार करना चाहिए था। लेकिन तुम तो चले थे शेर बनने! इसलिए तुम्हारी ऐसी दुर्गति हुई। " सीख : बिना सोचे-समझे नकल करने का परिणाम बुरा होता है।

जानेवारी ०५, २०२२

एकता की शक्ति

         एकता की शक्ति 



   एक गाँव में चतुर सिंह नामक एक धनी किसान रहता था। वह बूढ़ा हो गया था। उसके चार बेटे थे। वे आपस में लड़ते-झगड़ते रहते थे। बूढ़ा किसान उन्हें मिल-जुलकर रहने के लिए समझाता था पर पिता की सीख का उन पर कोई असर न होता था। एक बार चतुर सिंह बीमार पड़ा दिन-पर-दिन उसकी बीमारी बढ़ती गई। उसे विश्वास हो गया कि मृत्यु उसके बहुत निकट आ पहुँची है। उसे अपने बेटों के बारे में बहुत चिंता हो रही थी। आखिर उसने चारों बेटों को अपने पास बुलाया। फिर उसने लकड़ी का एक गट्ठर मँगवाया। उसने बारी-बारी से हर बेटे को वह गट्ठर तोड़ने के लिए कहा। हर बेटे ने गट्ठर तोड़ने को भरसक कोशिश की। पर उनमें से कोई भी उस गट्ठर को तोड़ नहीं सका। इसके बाद किसान ने वह गट्ठर खुलवा दिया। उसने उसमें से एक-एक लकड़ी हरएक बेटे को तोड़ने के लिए दी। सब ने अपनी अपनी लकड़ी आसानी से तोड़ डाली। तब किसान ने उनसे कहा, "अच्छा बताओ जब ये लकड़ियाँ गट्ठर के रूप में बँधी थीं, तब तुम इन्हें क्यों नहीं तोड़ पाए ?" बेटों ने कहा, "पिता जी पहले ये लकड़ियाँ गट्ठर में एकसाथ बँधी हुई थीं। इसलिए हम उन्हें तोड़ नहीं पाए। " तब बूढ़े किसान ने उन्हें समझाया, "प्यारे बेटो गट्ठर की लकड़ियों की तरह तुम लोग भी संगठित रहोगे तो तुम्हारा कोई कुछ भी बिगाड़ नहीं सकेगा। किंतु तुम लोग आपस में लड़ते-झगड़ते रहोगे तो अलग-अलग लकड़ियों की तरह नष्ट हो जाओगे। " बूढ़े पिता की यह सीख सुनकर चारों बेटों की आँखें खुल गई। उन्होंने मिल-जुलकर रहने का निश्चय किया। सीख एकता में बहुत शक्ति होती है।

जानेवारी ०५, २०२२

आराम की कीमत

          आराम की कीमत 

एक बार एक जंगली गधा एक गाँव के पास पहुँच गया। वहाँ उसकी भेंट एक पालतू गधे से हो गई। पालतू गधे को अच्छा खाना मिलता था। उसे अच्छी तरह रखा जाता था। इससे वह खूब मोटा-ताजा हो गया था। उसे देखकर जंगली गधे को ईर्ष्या हुई। उसने पालतू गधे को बधाई देते हुए कहा, "भाई, तुम बहुत भाग्यवान हो। तुम्हें बहुत अच्छा मालिक मिला है। वह तुम्हारा बहुत ख्याल रखता है। मुझे देखो, दिनभर इधर-उधर भटकता रहता हूँ। न खाने का ठिकाना है, न रहने का। " जंगली गधे की बात सुनकर पालतू गधा फूला न समाया। उसे जंगली गधे पर दया आई अगले दिन पालतू गधे की पीठ पर मालिक ने खूब बोझ लाद दिया। मालिक डंडा लेकर गधे के पीछे-पीछे चल पड़ा। यदि गधा कहीं रुकता तो मालिक उसकी पीठ पर डंडा जमा देता। मालिक के डंडे खाकर गधा बहुत दुःखी हो रहा लगा, यह मालिक मुझे अपने मतलब के लिए ही अच्छा अच्छा खिलाता है। इसके यहाँ रहकर मुझे जो ऐश-आराम मिलता है. गधा सोचने डंडे की यह मार उसी की कीमत है। जंगली गधे को भले ऐसा आराम नहीं मिलता, पर उसे ऐसी मार भी तो नहीं खानी पड़ती ! जो मिला सो खाकर वह संतुष्ट रहता है। सचमुच, जंगली गधा मुझसे ज्यादा सुखी है। सीख: गुलामी के ऐश-आराम के बजाय आजादी की सूखी रोटी ज्यादा अच्छी है।

जानेवारी ०५, २०२२

बालक की सूझ-बूझ

        बालक की सूझ-बूझ 

          प्रकाश नाम का एक लड़का था। वह नौवीं कक्षा में पढ़ता था। उसके स्कूल का रास्ता कुछ दूर तक रेल लाइन के किनारे-किनारे होकर जाता था। एक दिन उस रास्ते से गुजरते समय प्रकाश एक जंगह ठहर गया यहाँ रेल की पटरी उखड़ी हुई थी। वहाँ से जाने वाली रेलगाड़ी के डिब्बे पटरी से उतर कर गिर सकते थे। भीषण दुर्घटना की संभावना थी। प्रकाश अभी यह सोच ही रहा था कि उसे एक रेलगाड़ी दूर से आती हुई दिखाई पड़ी। उसने फौरन अपने कंपास से ब्लंड निकाला। उसने ब्लेड से अपनी उँगली चीर दो प्रकाश ने सफेद रंग की कमीज पहन रखी थी। उंगली से निकले खून से उसने अपनी कमीज रंग ली। वह अपनी लाल कमोज लेकर पटरी पर खड़ा हो गया। लाल झंडी की तरह उसे फहराने लगा। रेल के ड्राइवर ने दूर से उसे देखा और गाड़ी रोक दी। एक बड़ी दुर्घटना होते-होते बच गई। लेकिन अधिक खून यह जाने से प्रकाश बेहोश होकर गिर पड़ा। रेलगाड़ी के गार्ड ने प्रकाश को गिरते हुए देखा वह तुरंत गाड़ी से नीचे उतरा और उसने प्रकाश का प्राथमिक उपचार किया। कुछ देर बाद उसे होश आ गया। गार्ड ने प्रकाश के साहस और उसकी सूझ-बूझ को बहुत प्रशंसा की। उसने कहा, 'मैं राष्ट्रपति को पत्र लिखकर वीरता पुरस्कार के लिए तुम्हारे नाम की सिफारिश करूंगा।" 26 जनवरी को राष्ट्रपति ने उसकी वीरता के लिए उसे पुरस्कार से सम्मानित किया। सीख संकट के समय साहस और सूझ-बूझ से काम लेना चाहिए।
जानेवारी ०५, २०२२

लकड़हारा और देवदूत

   लकड़हारा और देवदूत 

            


         गोपाल एक गरीब लकड़हारा था। वह रोज जंगल में जाकर लकड़ियाँ काटता था और शाम को उन्हें बाजार में बेच देता था लकड़ियों की इस बिक्री से मिले पैसों पर ही उसके परिवार का निर्वाह होता था। एक दिन गोपाल जंगल में दूर तक निकल गया। वहाँ उसकी दृष्टि नदी के किनारे एक बड़े पेड़ पर पड़ी। उसने सोचा कि आज उसे बहुत सारी लकड़ियाँ मिल जाएँगी। यह सोचते हुए वह अपनी कुल्हाड़ी के साथ उस पेड़ पर चढ़ गया। अभी उसने एक डाल काटना शुरू ही किया था कि अचानक उसके हाथ से कुल्हाड़ी छूट गई और नदी में जा गिरी गोपाल झटपट पेड़ से नीचे उतरा और नदी में कुल्हाड़ी ढूँढ़ने लगा। उसने बहुत कोशिश की पर कुल्हाड़ी उसके हाथ न लगी। वह उदास होकर पेड़ के नीचे बैठ गया। इतने में एक देवदूत वहाँ आ पहुँचा। उसने गोपाल से उसकी उदासी का कारण पूछा। गोपाल ने कुल्हाड़ी नदी में गिर जाने की बात उसे बताई देवदूत ने उसे धीरज बँधाते हुए कहा, "घबराओ मत, मैं तुम्हारी कुल्हाड़ी निकाल दूंगा।" यह कहते हुए देवदूत ने नदी में डुबकी लगाई। वह सोने की एक कुल्हाड़ी लेकर बाहर निकला। उसने गोपाल से पूछा, "क्या यही तुम्हारी कुल्हाड़ी है गोपाल ने कहा "नहीं महाराज, यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है। फिर दूसरी बार दुबको लगाकर देवदूत ने चाँदी की कुल्हाड़ी निकाली। तब भी लकड़हारे ने इनकार करते हुए कहा, नहीं, यह भी मेरी कुल्हाड़ी नहीं है। "देवदूत ने फिर डुबकी लगाई। इस बार उसने नदी से लोहे की कुल्हाड़ी निकाली। उस कुल्हाड़ी को देखते ही गोपाल खुशी से बोल उठा, "हाँ महाराज यही मेरी कुल्हाड़ी है। " गोपाल की ईमानदारी पर देवदूत बहुत खुश हुआ। लोहे की कुल्हाड़ी के साथ सोने और चाँदी की कुल्हाड़ियाँ भी देवदूत ने गोपाल को इनाम में दे दीं गोपाल ने देवदूत का बहुत आभार माना। सीख ईमानदारी एक अच्छा गुण है ईमानदारी का फल मीठा होता है।

जानेवारी ०५, २०२२

परिश्रम ही धन है

                            परिश्रम ही धन है 

        


      सुंदरपुर गाँव में एक किसान रहता था। उसके चार बेटे थे। वे सभी आलसी और निकम्मे थे। जब किसान बूढ़ा हुआ उसे बेटों की चिंता सताने लगी। एक बार किसान बहुत बीमार पड़ा। मृत्यु निकट देखकर उसने चारों बेटों को अपने पास बुलाया। उसने उनसे कहा, "मैंने बहुत-सा धन अपने खेत में गाड़ रखा है। तुम लोग उसे निकाल लेना। " इतना कहते कहते किसान के प्राण निकल गए। चारों बेटों ने पिता का क्रिया-कर्म किया। बाद में चारों भाइयों ने खेत की खुदाई शुरू कर दी। उन्होंने खेत का चप्पा-चप्पा खोद डाला। पर उन्हें कहीं धन नहीं मिला। उन्होंने पिता को खूब कोसा। वर्षाऋतु आने वाली ही थी। किसान के बेटों ने उस खेत में धान के बीज बो दिए। वर्षा का पानी पाकर पौधे खूब बढ़े। उन पर बड़ी-बड़ी बालें लगीं। उस साल खेत में धान की बहुत अच्छी फसल हुई। चारों भाई बहुत खुश हुए। अब उन्हें पिता की बात का सही अर्थ समझ में आ गया। उन्होंने खेत की खुदाई करने में जो परिश्रम किया था, उसी से उन्हें फसल के रूप में धन मिला था। इस प्रकार श्रम का महत्त्व समझने पर चारों भाई मन लगाकर खेती करने लगे। सीख : परिश्रम ही सच्चा धन है।

जानेवारी ०५, २०२२

संतोष ही धन है

             संतोष ही धन है 

         रामपुर नाम का एक गाँव था। एक बार उस इलाके में बरसात नहीं हुई। खेती नष्ट हो गई। भारी अकाल पड़ा। रामपुर भी उस अकाल की चपेट में आ गया। लोग भूखों मरने लगे। रामपुर में एक जमींदार रहता था। वह बहुत दयालु था। मासूम बच्चों और बेसहारा औरतों को भूखों मरते देखकर उसे बहुत दुःख हुआ। लोगों की दुर्दशा उससे देखी न गई। उसने लोगों को रोज रोटियाँ बाँटना शुरू किया। एक दिन उसने जान-बूझकर एक छोटी रोटी बनवाई। जब रोटियाँ बाँटी जाने लगीं, तब सभी को छोटी रोटी लेने में हिचकिचाहट हो रही थी। कोई भी उस छोटी रोटी को लेना नहीं चाहता था।

इतने में एक बालिका आई। उसने सोचा कि वह छोटी रोटी ही मेरे लिए काफी है। उसने फौरन वह छोटी रोटी ले ली। घर जाकर बालिका ने रोटी तोड़ी तो उसमें से सोने की एक मुहर निकली। बालिका और उसके माँ-बाप उस मुहर को लौटाने के लिए जमींदार के घर जा पहुँचे। जमींदार ने कहा, "यह मुहर तुम्हारे संतोष और सच्चाई का इनाम है। " वे बहुत खुश हुए और मुहर लेकर घर लौट आए। सीख : संतोष और सच्चाई अच्छे गुण हैं। उनसे सदा अच्छा फल मिलता है।

शनिवार, १८ डिसेंबर, २०२१

डिसेंबर १८, २०२१

चतुर डॉक्टर

            चतुर डॉक्टर

 राजू नाम का एक लड़का था। वह पढ़ाई के प्रति बहुत लापरवाह था। वार्षिक परीक्षा सिर पर आ गई थी। राजू को अनुत्तीर्ण होने का डर था, इसलिए वह किसी तरह परीक्षा से बचना चाहता था। राजू के एक मित्र ने उसे सलाह दी, "तुम अपनी याददाश्त खो जाने का ढोंग करो। " राजू को यह सलाह पसंद आ गई। उसने माँ को पहचानने से इनकार कर दिया। पिता जी उसके कमरे में आए, तो वह बोला, "कौन हैं आप? मेरे कमरे में क्यों आए हैं? चले जाइए यहाँ से। " राजू के पिता घबरा गए। उन्होंने राजू के मित्र से पूछताछ की। मित्र ने बताया, "राजू स्कूल में से सीढ़ियों से गिर गया था। तब से वह अपनी याददाश्त खो बैठा है। " राजू के पिता ने फौरन डॉक्टर को बुलाया। चतुर डॉक्टर को यह समझते देर न लगी कि राजू ढोंग कर रहा है। डॉक्टर ने पर बर्द राजू के पिता से कहा, "इस लड़के के सिर में कुछ गड़बड़ हो गई है। इसके सिर का ऑपरेशन करना पड़ेगा। ऑपरेशन का नाम सुनते ही राजू घबरा गया। उसने सब कुछ कबूल कर लिया। उसने कहा, "परीक्षा से बचने के लिए ही मैंने यह नाटक किया है। " पिता ने राजू को समझाया, “बेटा, अब भी समय है। अगर तुम लगन से पढ़ोगे, तो अवश्य उत्तीर्ण होगे। " राजू ने पिता को बात मान ली। उसने मन लगाकर पढ़ाई की और परीक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हो गया। सीख : संकट से डर कर नहीं, जूझकर ही पार पा सकते हैं।

डिसेंबर १८, २०२१

चित्रकार की चतुराई

    चित्रकार की चतुराई 



      एक चित्रकार था। उसे प्राकृतिक दृश्यों के चित्र बनाने का शौक था। इसलिए वह प्रायः नदी के किनारे या बाग-बगीचों में जाकर चित्र बनाया करता था। एक बार चित्रकार घने जंगल में पहुँच गया। जंगल में एक जगह खूब हरियाली थी। रंगबिरंगे फूल खिले हुए थे। चित्रकार वहाँ बैठकर एक चित्र बनाने लगा। तभी सामने से वहाँ एक शेर आ गया। शेर को देखते ही चित्रकार के होश उड़ गए। फिर भी उसने हिम्मत की और शेर से कहा, "हे जंगल के राजा, आप सामने वाले इस पत्थर पर बैठ जाइए। मैं आपका एक सुंदर चित्र बना दूँ। चित्र बनाने की बात सुनते ही शेर खुश हो गया और चित्रकार के सामने बैठ गया। चित्रकार देर तक शेर का चित्र बनाता रहा। कुछ देर के बाद वह शेर से बोला, “महाराज, आपके अगले भाग का चित्र तो बन गया। अब आप मुँह उधर करके बैठ जाइए तो मैं आपके पिछले हिस्से का भी चित्र बना दूँ। "

अपने पूरे शरीर का चित्र बनवाने के लालच में शेर पीछे की ओर मुँह करके बैठ गया। चित्रकार को काफी समय लगाता देख आँखें बंद करके सुस्ताने लगा। चित्रकार तो इसी मौके की ताक में था। उसने चित्र बनाने का अपना सारा सामान समेटा और मुझे आश्र चुपके से वहाँ से नौ-दो-ग्यारह हो गया। इस प्रकार चतुराई से चित्रकार ने अपनी जान बचा ली। 

          सीख: चतुराई से काम लिया जाए, तो संकट को टाला जा सकता है।

डिसेंबर १८, २०२१

सत्यवादी राम

           सत्यवादी राम 


राम नाम का एक सुशील विद्यार्थी था। एक दिन गणित की कक्षा में अध्यापक ने सभी विद्यार्थियों को गृहकार्य दिया। उसमें सबको गणित का एक प्रश्न हल करना था। घर जाकर राम उस प्रश्न को हल करने में जुट गया। उसने खूब प्रयत्न किया, पर वह उस प्रश्न को हल न कर सका। राम ने अपने बड़े भाई से मदद माँगी। उन्होंने कुछ ही समय में प्रश्न हल कर दिया। राम की खुशी का ठिकाना न रहा। दूसरे दिन अध्यापक ने सभी विद्यार्थियों का गृहकार्य देखा। केवल राम का ही उत्तर सही था। अध्यापक ने राम को शाबाशी दी। इस पर राम फूट-फूटकर रोने लगा। उसे रोते देखकर सब चकित रह गए। अध्यापक ने गोपाल से रोने का कारण पूछा। राम ने कहा, "गुरु जी, आपने मेरी प्रशंसा की, लेकिन मैं प्रशंसा के लायक नहीं हूँ। यह प्रश्न मैंने नहीं, मेरे बड़े भाई ने हल किया है। " राम की इस सत्यवादिता पर अध्यापक महोदय बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा, "बेटा, तुमने सच बोलकर सचमुच मेरा दिल जीत लिया है। यह सत्यवादिता तुम्हें एक दिन जरूर महान बनाएगी। " सीख सच बोलना एक श्रेष्ठ है।

डिसेंबर १८, २०२१

हिंदी कहानी- दहेज- एक बुरी बला

    


     दहेज- एक बुरी बला 

              अथवा 

दहेज- एक सामाजिक बुराई 

         रूपेश नाम का एक युवक था। वह एक मोटर मैकेनिक था। मोना नाम की एक सुंदर लड़कों से उसका परिचय हुआ। परिचय बढ़ता गया और कुछ समय बाद दोनों ने विवाह कर लिया। मोना गरीब घर की, पर स्वभाव की अच्छी थी। विवाह के बाद कुछ महीने आनंद में बीत गए। इस बीच राकेश ने एक रिक्शा खरीदने का निश्चय किया। उसने मोना से कहा कि वह पचास हजार रुपये अपने पिता से ले आए, क्योंकि विवाह के समय दहेज के रूप में कुछ भी नहीं दिया था। इस पर मोना ने कहा, “तुम जानते हो कि मेरे पिता एक दफ्तर में मामूली क्लर्क हैं। उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। इतनी बड़ी रकम मैं उनसे कैसे माँग सकती हूँ ?" रूपेश रोज मोना से रकम लाने के लिए कहता और मोना साफ इनकार कर देती। फिर तो दहेज की रकम के लिए उनमें रोज झगड़ा होने लगा। कभी-कभी रूपेश मोना की मारपीट भी करता।एक दिन राकेश और मोना के बीच झगड़ा इतना बढ़ गया कि मोना नाराज होकर अपने पिता के घर चली गई। मोना के पिता ने पुलिस में दहेज का केस कर दिया। परिणामस्वरूप न्यायालय ने रूपेश को छः महीने की जेल की सजा दी। 


सीख : दहेज की प्रथा हमारे समाज के लिए अभिशाप है। इसकी लेन-देन से दूर रहना चाहिए।