उपकार का बदला
एक सुंदर बन था। उसमें फूलों और फलों से लदे तरह-तरह के वृक्ष थे। उन पर अनेक प्रकार के पक्षी रहते थे। उनका जीवन बहुत आनंदमय था। एक बार देवराज इंद्र उस वन में सैर करने के लिए आए वन की प्राकृतिक शोभा ने उनका मन मोह लिया। अचानक उनकी दृष्टि एक तोते पर पड़ी। वह एक सूखे पेड़ पर बैठा हुआ था। वह बहुत दुखी दिखाई दे रहा था। उसे इस दशा में देखकर इंद्रदेव को आश्चर्य हुआ। उन्होंने तोते से पूछा, "इस हरे-भरे और फलों से संपन्न वन में सभी पक्षी आनंद से रहते हैं। फिर तुम इस सूखे पेड़ पर अकेले और उदास हो कर क्यों बैठे हो ?"
तोते ने उत्तर दिया, ‘‘ हे देवराज, कुछ समय पहले यह वृक्ष भी हरा-भरा और फूलॉ-फलों से लदा हुआ था। इसने बरसों तक मुझे आश्रय दिया और अपने मीठे-मीठे फल खिलाए। इसने आँधी-पानी और तूफान में मुझे सुरक्षा दी। आज यह सूख गया है। क्या मैं बुरे दिनों में इसका साथ छोड़ दूँ? क्या मैं अपने आश्रयदाता का उपकार भूल जाऊँ ?" उस सूखे वृक्ष के प्रति तोते का यह प्रेम देखकर इंद्रदेव बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने उस वृक्ष को फिर से हरा-भरा कर दिया। तोते ने खुश होकर इंद्रदेव का आभार माना। सीख : भलाई करने वाले का उपकार कभी नहीं भूलना चाहिए।
कोणत्याही टिप्पण्या नाहीत:
टिप्पणी पोस्ट करा