epranali

This is educational blog.

Res

Breaking news

मंगळवार, २६ जुलै, २०२२

चाँदनी रात में नौका विहार

                        चाँदनी रात में नौका विहार 





[ रूपरेखा (1) चाँदनी रात की सैर (2) चाँदनी की शोभा (3) नदी तट का वर्णन (4) नौका विहार का आनंद (5) मन पर प्रभाव। ]

            नाव में बैठकर नदी में सैर करना किसे अच्छा नहीं लगता? रात चाँदनी हो, तब तो कहना ही क्या। पिछली शरद पूर्णिमा रात को मैंने अपने कुछ मित्रों के साथ नौका विहार का आनंद लिया। 

                 नौका विहार करने हम सरस्वती नदी के किनारे पहुँच गए। शरद पूर्णिमा का चाँद पूरी तरह खिला हुआ था। चाँदनी के रूप में वह धरती पर अमृत बरसा रहा था। हवा के शीतल झोंके वातावरण को खुशनुमा बना रहे थे। 

                  नदी के तट पर चाँदनी रात मनाने के लिए बहुत से लोग आए हुए थे। एक ओर कुछ बच्चे बाजे बजा रहे थे और शोर-गुल कर रहे थे। कुछ लोग फिल्मी गीत गा रहे थे। कुछ लोग ढोल, मजीरे की ताल पर नाच रहे थे। खोमचेवालों की अच्छी बन आई थी। पूनम की रात में नदी का जल चाँदनी से खेल रहा था। नदी में कई नावें पाल ताने तैर रही थीं। उन पर छोटे-छोटे दीपक टिमटिमा रहे थे। इनसे नदी का दृश्य और भी मनोरम लग रहा था। हम भी एक नाव पर बैठ गए। पाल खुलते ही नाव सरपट चल पड़ी। 

                  नदी की लहरें नाव से टकरा रही थीं। शीतल जल की फुहारों से हम पुलकित हो उठे। नदी के पानी में चाँद सितारों के प्रतिबिंब देखकर हमारा मन प्रसन्न हो गया। हमारी तरह कई लोग नावों में सैर कर रहे थे। नावों में आपस में होड़-सी लगी हुई थी। हमारा नाविक बहुत फुरतीला था। एक बार तो हमारी नाव पलटते-पलटते बची। कुछ माँझी नाव खेते-खेते गीत गा रहे थे। हमारी नाव के माँझी के पास भी गीतों का खजाना था। उसका गला भी बहुत सुरीला था।

                  बहुत दूर तक जाने के बाद हमारी नाव वापस लौट पड़ी। वापसी के समय माँझी को बहुत मेहनत करनी पड़ी, क्योंकि नाव अब नदी के बहाव की उल्टी दिशा में आ रही थी। माँझी को इस बार चप्पू (डाँड़) के सहारे नाव को खेना पड़ा था। नौका विहार के बाद हमने नदी के तट पर जलपान किया। बाद में कुछ देर तक हम नदी के तट पर घूमते रहे। 

रात का नौका विहार मुझे आज भी याद आ रहा है !

कोणत्याही टिप्पण्‍या नाहीत:

टिप्पणी पोस्ट करा