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मंगळवार, २६ जुलै, २०२२

मेरा अद्भुत स्वप्न

                                मेरा अद्भुत स्वप्न




 [ रूपरेखा : (1) स्वप्न का सिलसिला (2) वह अनोखी दुनिया (3) वहाँ के बच्चों के साथ (4) देवी महालक्ष्मी के दर्शन (5) एक अनोखा व मजेदार स्वप्न । ] 

                     रात को मुझे अकसर सपने दिखाई देते हैं। सपने में मैं कभी अखाड़े में बड़े-बड़े पहलवानों को चित कर देता हूँ। कभी क्रिकेट के खेल में सेंचुरी बना लेता हूँ। कल रात को मैं 'परी कथाएँ' नाम की एक पुस्तक पढ़ रहा था। पढ़ते-पढ़ते आँख कब लग गई, पता ही नहीं चला। नींद में मैंने एक अद्भुत स्वप्न देखा।

                    स्वप्न में मुझे एक सुंदर रथ दिखाई दिया। रथ में सात घोड़े जुते हुए थे। रथ का सारथि एक सुंदर बालक था। उसने मुझे अपने पास बुलाया और रथ में बैठने के लिए कहा। ज्यों ही मैं रथ में बैठा कि रथ उड़ने लगा। आकाश में इतनी ऊँचाई पर उड़ने में मुझे बहुत मजा आ रहा था। 

                      कुछ देर उड़ने के बाद रथ एक मनोरम प्रदेश में उतरा। वहाँ चारों ओर हरी-हरी मखमल जैसी घास उगी हुई थी। आस-पास विचित्र रंगोंवाले सुगंधित फूल खिले हुए थे। पास ही एक तालाब था। उसमें हंस तैर रहे थे। झरनों का मधुर संगीत सुनाई दे रहा था। मेरे लिए यह अद्भुत दुनिया थी ।

                 मुझे एक छायादार पेड़ के नीचे अकेला छोड़कर वह दिव्य बालक रथ सहित अदृश्य हो गया। लेकिन मैं घबराया नहीं । मैं प्रकृति का आनंद लेने लगा। इतने में वहाँ मेरी उम्र के कई सुंदर लड़के आ पहुँचे। वे सभी दिव्य बालक लग रहे थे। उन्होंने मुझसे मेरा नाम पूछा। वे हिंदी में बातें कर रहे थे। उन्होंने मुझे बताया कि यह नंदनवन है। यहाँ केवल भले लोग ही आ सकते हैं। उन्होंने कहा, 44 अब तुम हमारे मित्र हो। हम हर तरह से तुम्हारी मदद करेंगे। " वे मेरे लिए ढेर सारे खिलौने लाए थे। वे सारे खिलौने उन्होंने मुझे उपहार में दे दिए। 

                 इस प्रकार बातचीत चल रही थी कि तभी वहाँ एक देवी प्रकट हुईं। वे बहुत ही सुंदर और तेजस्विनी थीं। एक दिव्य बालक ने मुझसे कहा, "ये हमारी माता हैं। इनका नाम महालक्ष्मी है। " मैंने माँ महालक्ष्मी को प्रणाम किया। उन्होंने मेरे सिर पर हाथ फेरा। माता ने मुझे कमल का एक फूल देकर कहा, "इसे संभाल कर रखना। इससे तुम जो भी माँगोगे, तुम्हें मिल जाएगा। माता महालक्ष्मी के दर्शन कर मैं बहुत प्रसन्न हुआ। तभी मेरी माँ मुझे झकझोरती हुई बोली, " अरे उठ ! देखता नहीं, दिन चढ़ आया है। आज क्या स्कूल नहीं जाना है?" मैंने हड़बड़ा कर आँखें खोलीं।                  कीतना अनोखा और मजेदार था वह स्वप्न !

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