अजाण आम्ही तुझी लेकरें
नेमाने तुज नमितो गातो, तुझ्या गुणांच्या कथा ॥ध्रु०॥
सूर्यचंद्र हे तुझेच देवा, तुझीं गुरें वासरें । अजाण आम्ही तुझीं लेकरे, तू सर्वांचा पिता । तुझीच शेर्ते सागर डोंगर, फुलें फळे पाखरें ॥१॥
अनेक नांवे तुला तुझे रे, दाही दिशांना घर ।
हौस एवढी पुरवी देवा, हीच एक मागणी ॥३॥
करिशी देवा सारखीच तू, माया सगळ्यांवर ॥२॥
खूप शिकावे काम करावे, प्रेम धरावे मनी
--संजीवनी मराठे
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दया कर दान भक्ति का
दयाकर दान भक्ति का हमें परमात्मा देना ।
दया करना हमारी आत्मामें शुद्धता देना ॥
हमारे ध्यान में आओ प्रभु आँखों में बस जाओ।
अन्धेरै दिलमें आकर के परमज्योती जगा देना ।।
बहा दो प्रेम की गंगा, दिलों में प्रेम का सागर ।
हमें आपस में मिलजुलकर, प्रभु रहना सिखा देना ॥
हमारा कर्म हो सेवा, हमारा धर्म हो सेवा ।
सदा ईमान हो सेवा व सेवकचर बना देना ॥
वतन के वास्ते जीना वतन के वास्ते मरना ।
वतनपर जान फिदा करना प्रभु हमको सिखा देना ॥
दयाकर दान भक्ति का, हमें परमात्मा देना ।
दया करना हमारी, आत्मा में शुद्धता देना ॥
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