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बुधवार, २७ जुलै, २०२२

एक फूल की आत्मकथा

 एक फूल की आत्मकथा 



[ रूपरेखा : (1) जन्म और बचपन (2) सुगंध और सुंदरता का जादू (3) भगवान के सिर पर (4) वर्तमान दशा (5) अंतिम इच्छा। ]

                 मैं गुलाब का फूल हूँ। मेरा जन्म जीजामाता उद्यान में एक पौधे पर हुआ था। वहाँ अन्य पौधों पर मेरे और भी अनेक साथी थे। सबका अपना-अपना रूप-रंग और सबकी अपनी-अपनी सुंदरता थी। पहले तो मैं बहुत छोटा था। उस समय लोग मुझे 'कली' कहते थे। बड़ा होने पर लोग मुझे 'फूल' कहने लगे। मैं अपनी माँ की गोद में हवा के झोंकों के साथ झूमता रहता था। कितनी आनंदभरी थी बचपन की वह प्यारी दुनिया ! 

              जब मैं फूल बना, तो मेरे रूप-रंग की शान ही निराली थी। भी मुझे देखता, बस देखता ही रह जाता। मेरी सुगंध और सुंदरता लोगों पर जादू जैसा असर करती थी। मधु के लोभी भौरे मुझपर मँडराते रहते थे। तितलियाँ मेरे आसपास ही रहना चाहती थीं। सचमुच मेरे जीवन का सुनहरा समय था।

                  मगर परिवर्तन जीवन का एक नियम है। एक दिन सुबह माली बगीचे में आया। उसने बहुत निर्दयता से मुझे मेरी माँ की गोद से अलग कर दिया। उसने मुझे तोड़कर एक टोकरी मे डाल दिया। इसी प्रकार और भी कई फूल तोड़कर उसने टोकरी में डाले।

                  इसके बाद माली हम सब फूलों को बाजार में ले गया। वहाँ एक पुजारी ने मुझे खरीद लिया। मंदिर में पूजा के समय उसने मुझे भगवान की मूर्ति पर चढ़ा दिया। भगवान के मस्तक पर पहुँचकर मैं फूला नहीं समाया। पर हाय री किस्मत ! कुछ ही मिनट बीते थे कि मेरी तकदीर बदल गई। पुजारी ने मुझे भगवान के मस्तक से उठाया और एक भक्त को दे दिया। मुझे पाकर उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने मुझे अपने सिर-आँखों से लगाया। घर पहुँचकर उसने मुझे अपनी अलमारी पर रख दिया। दूसरे दिन पड़ा-पड़ा मैं मुरझा गया। मेरा रूप-रंग उतर गया था। मेरी खुशबू भी जाती रही थी। सफाई करते समय नौकर ने मुझे उठाकर कचरे की टोकरी में डाल दिया। 

        तब से मैं यहीं पड़ा-पड़ा अपनी किस्मत पर रो रहा हूँ। अब तो बस एक ही इच्छा है कि इस जीवन का अंत हो जाए और किसी फुलवारी में मेरा फिर से जन्म हो।

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