मेरा प्रिय त्योहार
[ रूपरेखा : (1) दीपावली का कृषि-सभ्यता से संबंध (2) धनतेरस की छोटी दीवाली (3) दीपावली पर्व से जुड़ी कथाएँ (4) दीप-सजावट (5) व्यापारियों का नववर्ष )
शहरा, रक्षाबंधन, होली, मकरसंक्रांति, दीपावली आदि हमारे प्रमुख त्योहार हैं। इन त्योहारों में दीपावली मुझे विशेष प्रिय है। इस पर्व का हमारी कृषि-सभ्यता से गहरा संबंध है। दीपावली के पहले फसल तैयार हो जाने पर किसान प्रसन्नता से झूम उठते हैं। इस फसल से वर्षभर के लिए उन्हें अन्न की चिंता नहीं रहती। वे अपने घर लीपते-पोतते हैं, सफाई करते हैं। रात्रि में दीपकों से अपने घरों को आलोकित करते हैं। यही उनका लक्ष्मीपूजन है और इसी दिन से वे अपने वर्ष का आरंभ मानते हैं।
दीपावली पर्व के साथ हमारी अनेक धार्मिक, सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक कथाएँ हुई है। मन के दिनो दीपावली होती है। कहा जाता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार धारण कर हिरण्यकशिपु का वध किया था और प्रह्लाद की रक्षा की थी। इस अवसर पर लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियाँ तथा नए बरतन खरीदना शुभ माना जाता है।
कार्तिक की अमावस्या को ज्योतिपर्व दीपावली मनाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि १४ वर्षों के वनवास के बाद इसी दिन श्रीरामचंद्र जी अयोध्या लौटे थे। उनके आगमन से जनता में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई थी। उनके स्वागत में अयोध्यावासियों ने अपने घरों को स्वच्छ कर घी के दीप जलाए थे। तभी से उस शुभ दिन की याद में लोगों ने दीपावली का त्योहार मनाना आरंभ कर दिया है।
एक किंवदंती यह भी है कि कार्तिक की अमावस्या को ही लक्ष्मी जी समुद्र-मंथन से प्रकट हुई थीं और देवताओं ने रात्रि में उनका पूजन किया था। लक्ष्मी जी धन की अधिष्ठात्री देवी हैं, इसलिए अमावस्या की रात्रि हमारे लिए धन और समृद्धि की रात्रि होती है। इस दिन संध्या के समय लक्ष्मी जी की पूजा कर घरों, दुकानों, मंदिरों और खेतों में दीप जलाए जाते हैं। सभी स्थानों को दीपों, मोमबत्तियों और बिजली के लट्टुओं से सजाया जाता है। हम अपने बंधु-बांधवों और इष्ट मित्रों का मिष्ठान्न आदि से स्वागत करते हैं। बच्चे पटाखे फोड़ते हैं।
कोणत्याही टिप्पण्या नाहीत:
टिप्पणी पोस्ट करा