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शुक्रवार, २९ जुलै, २०२२

प्रदूषण : समस्या और समाधान

                              प्रदूषण : समस्या और समाधान.  



                          [ रूपरेखा : (1) कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में वृद्धि (2) औद्योगिक कचरे से जल-प्रदूषण (3) आणविक विकिरण से प्रदूषण (4) जनसंख्या-वृद्धि (5) ध्वनि-प्रदूषण (6) ओजोन गैस की पर्त को खतरा (7) धरती के तापमान में वृद्धि (8) निष्कर्ष । ]

                    विश्व में प्रदूषण हर जगह फैला हुआ है। सर्वत्र कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है। जल, थल और आकाश में प्रदूषण का विष फैल रहा है। औद्योगीकरण के कारण यह विष दिनोदिन बढ़ता ही जा रहा है। आज खनिज तेल और कोयले का उपयोग पहले से कई गुना अधिक बढ़ गया है। वाहनों की संख्या भी बढ़ रही है और उनसे निकलने वाला धुआँ वायु को और भी विषाक्त बना रहा है। आदमी के लिए शुद्ध हवा में साँस लेना कठिन हो गया है। कारखानों की चिमनियों से निकलने वाले धुएँ के बादलों तथा रासायनिक तत्त्वों के कारण पर्यावरण दूषित हो रहा है। इससे लोगों को तरह-तरह के रोग हो रहे हैं। 

                     भारी मात्रा में औद्योगिक कचरा, कूड़ा-करकट, मल-मूत्र आदि नदियों और समुद्र में डाल दिया जाता है। झीलें भी इस गंदगी से नहीं बच पाई हैं। इससे जलीय वनस्पतियाँ, मछलियाँ और अन्य जीव-जंतु बड़ी संख्या में मरने लगे हैं। प्रदूषित जलसे सिंचाई करने के कारण खेती की पैदावार भी नष्ट हो रही है। धरती की उर्वरता कम होती जा रही है और आशंका है कि अंततः धरती खेती के अयोग्य हो सकती है। आणविक विकिरण से भी वायुमंडल प्रदूषित हुआ है और सभी प्राणियों एवं वनस्पतियों के अस्तित्व के लिए भारी संकट उत्पन्न हो गया है। 

                   भोपाल के गैस कांड और रूस के चर्नोबल की दुर्घटना ने संसार को दहला दिया है। फिर भी, महानगरों में नए-नए कल-कारखाने एवं रासायनिक उद्योग निरंतर स्थापित होते जा रहे हैं। दूसरी समस्या जनसंख्या वृद्धि की है। महानगरों की जनसंख्या दिनोदिन बढ़ती जा रही है। इस कारण भी प्रदूषण बढ़ रहा है।

                     जल प्रदूषण तथा वायु प्रदूषण के अतिरिक्त ध्वनि-प्रदूषण भी मानव के लिए खतरनाक है। महानगरों में आतिशबाजी, पटाखेबाजी और लाउडस्पीकर का उपयोग करने का शौक दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। वाहनों का शोर अनियंत्रित ढंग से बढ़ रहा है। इससे ध्वनि-प्रदूषण विकराल रूप धारण कर रहा है। 

                  पृथ्वी के पर्यावरण के ऊपर, सभी तरफ से 'ओजोन' नामक गैस की पर्त फैली हुई है। यह एक प्रकार का 'गाढ़ा ऑक्सीजन' है, जिसके कारण पृथ्वी पर जीवसृष्टि का अस्तित्व बना हुआ है। यह पृथ्वीवासियों के लिए एक प्रकार का सुरक्षा कवच है। अब इस पर कार्बन डाइऑक्साइड गैस का निरंतर आक्रमण हो रहा है। यदि ओजोन गैस की पर्त क्षत-विक्षत हो गई तो सूर्य की पराबैगनी (अॅल्ट्रावायलेट) किरणें जीवसृष्टि को पूर्णतः नष्ट कर देंगी। 

                      पर्यावरण को शुद्ध रखने के लिए हमें प्रदूषण के सभी कारणों को दूर करना होगा। वनों की कटाई रोकनी होगी। वृक्षारोपण के कार्यक्रम को प्राथमिकता देनी होगी। वैज्ञानिकों को प्रदूषण रोकने के नए-नए तरीकों का आविष्कार करना होगा।

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