राष्ट्रभाषा हिंदी.
(रूपरेखा (1) राजभाषा के रूप में मान्य (2) दैनिक व्यवहार की भाषा (3) विचार-विनिमय की भाषा (4) राष्ट्रीय एकात्मता स्थापित करने में सहायक (5) निष्कर्ष । ]
हमारे संविधान में अठारह भाषाओं को मान्यता दी गई है। उनमें हिंदी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया है। इस प्रकार इस विशाल देश को एकता के सूत्र में बाँधने का उत्तरदायित्व हिंदी को सौंपा गया है।
भारत में हिंदीभाषी क्षेत्र की स्थिति भी विशिष्ट प्रकार की है। इस क्षेत्र की सीमाएँ बैंगला, उड़िया, मराठी, गुजरात पंजाबी आदि भाषा-भाषी क्षेत्रों से लगी हुई हैं। इन विभिन्न भाषाओं को बोलने वाले लोग आपस में विचार-विनिमय के लिए हिंदी का ही उपयोग करते हैं। इसलिए हिंदी में भारत की लगभग सभी भाषाओं के थोड़े-बहुत शब्द पाए जाते हैं। हिंदी को बोलना तथा समझना सरल है। उर्दू बोलने वालों के लिए भी हिंदी में दैनिक व्यवहार करना बहुत आसान है।
भारत के प्रमुख तीर्थों को जाने वाले मार्ग हिंदी भाषी क्षेत्र से ही गुजरते हैं। इसलिए प्राचीन काल से ही देश के तीर्थयात्री हिंदी भाषा का उपयोग करते हैं। इसके साथ ही विभिन्न प्रदेशों के संतों एवं भक्तों ने उस समय को हिंदी में रचनाएँ कर देश की जनता को एकात्मता के सूत्र में पिरोने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया। गुरु नानक, कबीर, तुकाराम, एकनाथ, गुजरात के भालण तथा अखा और असम के शंकरदेव आदि की रचनाओं से सारा देश परिचित है। स्वामी दयानंद सरस्वती, महर्षि अरविंद, महात्मा गांधी, लोकमान्य टिळक आदि महापुरुषों ने भी हिंदी की महत्ता का समर्थन किया है।
राष्ट्रभाषा के पद पर वही भाषा आसीन हो सकती है जो धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में संपूर्ण देश को एकात्मता के सूत्र में बाँधने में समर्थ हो और जिसके माध्यम से देश के अधिक से अधिक लोग परस्पर विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हों।
इस तथ्य को ध्यान में रखकर देखा जाए तो यह स्पष्ट हो जाता है कि हिंदी ही भारत को राष्ट्रभाषा हो सकती है, क्योंकि उसी में देश की एकता बनाए रखने की क्षमता है। इसीलिए बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने कहा था, 'हिंदी भाषा को सहायता से भारतवर्ष के विभिन्न प्रदेशों के बीच जो लोग एकता का बंधन स्थापित कर सकेंगे, वे ही सच्चे भारतबंधु कहलाने योग्य होंगे।
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