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रविवार, २९ मे, २०२२

अगर बचपन लौट आए

                                          अगर बचपन लौट आए 




[ रूपरेखा (1) जीवन की विभिन्न अवस्थाएँ (2) निश्छल बचपन (3) कुछ इच्छाएँ (4) बचपन की खुशियाँ (5) बचपन का लौटना असंभव।] 

    में नौवोंक्षा में पढ़ रहा हूँ। मैं १५ वर्ष का हो चुका हूँ। पढ़ाई का बहुत-सा बोझ अभी से मेरे सिर पर आ पड़ा है। 

      जीवन की तीन मुख्य अवस्थाएँ होती हैं बचपन, जवानी और बुढ़ापा बचपन खेल-कूद, पढ़ाई-लिखाई और मौज-मस्ती की उम्र होती है। जवानी में व्यक्ति को तरह-तरह की जिम्मेदारियों निभानी पड़ती हैं। फिर बुढ़ापे में शरीर कमजोर हो जाता है। ज्यादा काम करना संभव नहीं होता। इसलिए सबसे प्यारी उम्र बचपन की ही होती है। बचपन को जीवन की 'सुहावनी' सुबह कहा जाता है। 

      बचपन में मन बहुत निश्छल होता है। यदि बचपन लौट आए, तो मनुष्य का मन फिर से निर्मल हो जाए। मन में ईर्ष्या, द्वेष, छल, कपट, घमंड, स्वार्थ आदि के लिए कोई स्थान न रहे। आपसी लड़ाई झगड़े का भी नामनिशान न रहे।

मेरा बचपन लौट आए, तो मैं अपनी दादी माँ से जी भरकर परियों की कहानियाँ सुनूँ। दोस्तों के साथ दिनभर लुका-छिपी का खेल खेलूं अपना जन्मदिन बार-बार मनाऊँ। 

      बचपन लौट आए. तो निश्चितता व मस्ती भरे ये सुनहरे दिन भी लौट आएँ। बाल कृष्ण की तरह अपने सखाओं के साथ में खेल-कूद में मस्त रहूँ पेड़ों पर चढ़कर आम व जागुन के फल तोहूँ। धूल-मिट्टी में खेलने से कभी न हिचकें फिर से तन्हा बालक बन जाऊँ तो सिर पर पढ़ाई-लिखाई का कोई बोझ न रहे गणित और विज्ञान में इतनी माथापच्ची करने से छुट्टी मिल जाए। सदा सिर पर सवार रहने वाली परीक्षाओं से छुटकारा हो जाए। 'मछली जल की रानी है, उसका जीवन पानी है' ऐसे-ऐसे शिशुगीत गाता रहूँ । 

        बचपन लौट आए, तो दिल के बगीचे में खुशियों के फूल खिल उठें पिता जी मुझे मनपसंद खिलौने दिलाएँ, माँ मुझे मीठी मीठी लोरियाँ सुनाए। दीदी मुझे चाकलेट और टाफियाँ दे कितना मजा आए, यदि बचपन लौट आए तो... । बचपन जीवन का स्वर्णकाल है। क्या एक बार गया हुआ बचपन फिर कभी वापस लौट सकता है?

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