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बुधवार, २७ जुलै, २०२२

एक किसान की आत्मकथा

    एक किसान की आत्मकथा 



(रूपरेखा (1) धरती का लाल और दैनिक जीवन की कठिन जीवन (4) सामाजिक जीवन (3) प्रगति के पथ पर 

               मैं एक किसान हूँ। होती मेरा व्यवसाय है। लोग मुझे 'काला' कहते हैं। पहले लोग राजा को 'अन्नदाता' कहते थे। अब स्वतंत्र भारत में यह गौरव हमें दिया जाता है। 

                 मैं गाँव में रहता हूँ। मेरा पर पहले कच्चा था। अब इसका कुछ हिस्सा पक्का बन गया है। इसी घर में मैं अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ रहता हूँ। मैं बहुत सवेरे हल-बैल लेकर अपने खेत पर चला जाता है। पूरे दिन नहीं खाता हूँ। अपने खेतों की जोताई करता हूँ। उनकी बोवाई करता हूँ। जब छोटे छोटे पौधे बड़े हो जाते हैं, तो उनकी सिंचाई और निराई करता है। फिर रात-दिन फसल की देखभाल करता रहता हूँ। फसल पक जाने पर उसकी कटाई करता है। तब कहीं आकर अनाज घर में आता है। मेरी पत्नी और बच्चे भी इन कामों में मेरी मदद करते हैं। अनाज के दाने वास्तव में मेरी मेहनत के मोती हैं। 

                 सावन-भादों को मूसलाधार बरसात में भी मैं खेतों में काम करता हूँ। पूष साथ की ठिठुरती सदी में फटे कपड़े लपेटे में फसलों को सिंचाई करता हूँ। जेठ- वैशाख की तपती लू में फसल की मैड़ाई करता हूँ। इतना करने पर भी कभी-कभी प्रकृति साथ नहीं देती। कभी सूखे के कारण फसल नष्ट हो जाती है और कभी ज्यादा वर्षा और बाढ़ से फसल बरबाद हो जाती है। घर की पूँजी भी मिट्टी में मिल जाती है। फिर भी मैं अपने काम में जुटा रहता हूँ। त्योहार ही हमारे मनोरंजन के साधन हैं। मेरे परिवार में होली, दीवाली, दशहरा, रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, रामनवमी आदि स्योहार उत्साह से मनाए जाते हैं। हम गरीब भले ही हों, पर अतिथियों एवं साधु-संतों का हमेशा स्वागत करते हैं। उनको सेवा सरकार में कोई कसर नहीं आने देते। हमारा रहन-सहन बहुत सादा है। खेती से जो भी मिल जाता है, उसी में हम गुजारा कर लेते हैं। उसी में बच्चों की पढ़ाई लिखाई होती है। उसी में से शादी ब्याह का काम भी निपटा लेते हैं।

              इन दिनों हम किसानों की दशा में काफी सुधार हुआ है। ग्रामीण बैंक से आज हमें कम सूद पर कर्ज मिल जाता है। इससे साहूकारों के चंगुल से हमें छुटकारा मिल गया है। मैं भी बैंक से कर्ज लेकर एक ट्रैक्टर खरीदना चाहता हूँ। ग्राम पंचायतों की स्थापना से भी गाँवों की हालत में बहुत सुधार हुआ है।

               मैं अपने बेटों को खूब पढ़ाकर बड़ा आदमी बनाना चाहता हूँ। मेरी यह इच्छा कब पूरी होगी, कुछ कह नहीं सकता। पर उम्मीद जरूर है।

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