पुस्तकालय
मनुष्य के जीवन में ज्ञान का बहुत महत्त्व है। शिक्षा के रूप में स्कूलों और कालेजों में विद्यार्थियों को ज्ञान दिया जाता है। संतों के प्रवचनों से भी हमें ज्ञान मिलता है। पर इस मामले में पुस्तकालयों की भूमिका निराली है। पुस्तकालयों को हम ज्ञान का भंडार कह सकते हैं। पुस्तकालय सरस्वती के पवित्र मंदिर हैं।
पुस्तकालयों में धर्म, साहित्य, विज्ञान, अर्थशास्त्र, राजनीति, कला, दर्शनशास्त्र आदि विभिन्न विषयों की पुस्तकें होती हैं। उनमें अनेक संदर्भ ग्रंथ और शब्दकोश भी होते हैं। बड़े से बड़े धनवान व्यक्ति के लिए भी इतनी सारी पुस्तकें खरीदना या अपने घर में रखना संभव नहीं होता। पुस्तकालयों में वहाँ बैठकर पढ़ने की सुविधा भी होती है। पुस्तकालयों में वाचनालय भी होता है, जहाँ अनेक दैनिकपत्र एवं पत्रिकाएँ आती हैं। कोई भी व्यक्ति वहाँ बैठकर इन सब को पढ़ सकता है। पुस्तकालय के सदस्य बनकर हम मनचाही पुस्तकें पढ़ने के लिए घर भी ला सकते हैं। पुस्तकालय ऐसी ज्ञान गंगा है, जिसमें कोई भी डुबकी लगा सकता है।
फुरसत का समय पुस्तकालय में बिताने से बहुत लाभ होता है। वहाँ रखी महान लेखकों की पुस्तकें हमें ज्ञान के साथ-साथ मनोरंजन भी प्रदान करती हैं। कहानियाँ और उपन्यास पढ़ने से मन हल्का हो जाता है। पुस्तकें पढ़ने से मन में नए विचार आते हैं। और नई प्रेरणाएँ मिलती हैं। देश-विदेश का साहित्य पढ़ने से हमारी दृष्टि विशाल होती है। इस प्रकार पुस्तकालय हमारे लिए वरदान साबित हो सकते हैं।
आदर्श पुस्तकालय वही होता है, जो सब के लिए खुला हो। उसका सदस्यता शुल्क अधिक न हो। उसमें उच्चकोटि की साहित्यिक पुस्तकें हों। विज्ञान और उद्योग संबंधी पुस्तकें अधिक मात्रा में हों। आदर्श पुस्तकालय दिनभर खुला रहता है। इससे अधिक से अधिक लोग इसका लाभ उठा सकते हैं।
सचमुच, पुस्तकालय ज्ञान के दीपक के समान है। भारत जैसे विकासशील देश में गाँव-गाँव में पुस्तकालय होने चाहिए। पुस्तकालयों के प्रकाश से ही अज्ञान का अँधेरा दूर हो सकता है।
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