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शनिवार, २८ मे, २०२२

खेल के मैदान में एक घंटा

           खेल के मैदान में एक घंटा


      शहरी जीवन में खेल के मैदान का बहुत महत्व है। खेल के मैदान में बिताया गया एक घंटा तन-मन में नई शक्ति और जगी भर देता है। पिछले रविवार की शाम को मैं और मेरे कुछ मित्र खेल के मैदान में जा पहुँचे। वहाँ बहुत चहल-पहल थी। 

       खेल के मैदान के एक हिस्से में कुछ सड़के क्रिकेट खेल रहे थे। जय कोई खिलाड़ी चौका या छक्का लगाता, तो लोग तालियाँ बजाकर उसका हौसला बढ़ाते। मैदान के दूसरे हिस्से में फुटबाल के खिलाड़ियों ने अपना खेल जमा रखा था। ये तेज गति से भागते हुए फुटबाल को इधर से उधर उछाल रहे थे। 

        कुछ दूरी पर कबड्डी का मुकाबला हो रहा था। जब कोई खिलाड़ी आउट होता तो दर्शक उछल पड़ते। एक बार 'आउट होने के मामले को लेकर खिलाड़ियों में झगड़ा होते-होते बचा। इन खेलों को देखकर हमें बहुत मजा आया। 

      मैदान के दूसरे छोर पर कुछ बच्चे अलग-अलग टोलियों बनाकर खो खो' आँख मिचौनी आदि खेल खेल रहे थे। खेल के मैदान के एक कोने में छोटे बच्चों के खेलने के लिए कुछ साधन बनाए गए थे। वहाँ कुछ बच्चे सरकन पट्टी पर सरकने का मजा लूट रहे थे। मैदान के आखिरी छोर पर एक अखाड़ा भी था वहाँ कई पहलवान कुश्ती के दाँवपेंच आजमा रहे थे। कुछ लोग डंड बैठक कर रहे थे। अखाड़े के पास एक ऊँचा खंभा गड़ा हुआ था। एक युवक उस मलखंभ पर चढ़कर तरह-तरह के करतब दिखा रहा था। 

        खेल के मैदान के एक किनारे कुछ बेंचें लगी हुई थीं। कुछ लोग इन बेंचों पर बैठे गपशप कर रहे थे। एक आदमी बेंच पर बैठा अखबार पढ़ रहा था। खेल के मैदान के बाहर कुछ खोमचेवालों के ठेले भी थे वहाँ कुछ लोग भेल पूरी पानी-पूरी, आइसक्रीम और शरबत आदि का मजा ले रहे थे। बच्चे गुब्बारे और सीटियाँ खरीद रहे थे। 

            इस प्रकार खेल के मैदान के मनोरंजक दृश्यों को देखकर हमारा मन ताजगी और खुशी से भर गया हमें पता भी न चला कि वहाँ एक घंटा कैसे बीत गया।

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