परोपकार
[ रूपरेखा : (1) परोपकार का अर्थ (2) प्रकृति से परोपकार करने की शिक्षा (3) समाज सेवा के पीछे परोपकार की भावना (4) समाज के लिए परोपकार का महत्व (5) परोपकार से आदर-प्रतिष्ठा की प्राप्ति (6) परोपकार ही ईश्वर की सच्ची पूजा ।]
परोपकार का अर्थ है - नि:स्वार्थ भावना से दूसरों की भलाई करना। हमारे संतों ने परोपकार को सबसे बड़ा धर्म बताया है।
सूर्य प्रकाश देता है। नदियाँ हमें अपना ठंडा-मीठा जल देती हैं। पेड़ हमें फल और छाया देते हैं। फूल अपनी सुगंध से लोगों को प्रसन्न करते हैं। भरतमाता के हम पर अनेक उपकार हैं। इसीसे हमें तरह-तरह के अन्न और वनस्पतियों मिलती हैं। इस प्रकार प्रकृति हमें परोपकार की शिक्षा देती है।
परोपकार की भावना होने पर ही लोग समाज की सेवा कर सकते हैं। परोपकार की इच्छा से ही धनवान लोग अस्पताल मनवाते हैं, पाशालाएँ खुलवाते हैं, कुएँ खुदवाते हैं, प्याक शुरू करवाते हैं।
अनेक धर्मशालाएँ परोपकार की भावना से ही बनवाई गई हैं। समाज में शिक्षा और ज्ञान का प्रकाश फैलाने के लिए पुस्तकालय और वाचनालय खोले जाते हैं। कई संस्थाएँ गरीब विद्यार्थियों को मुफ्त पुस्तकें, कापियों और गणवेश देती हैं। इन सब अच्छे कामों के पीछे मनुष्य की परोपकार की भावना ही काम करती है। मानव समाज के लिए परोपकार का बहुत महत्त्व है। इससे दीन-दुखियों को सहायता मिलती है। इस प्रकार की निःस्वार्थ सहायता से गरीब विद्यार्थी भी ऊँची शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं।
परोपकार की भावना से किए गए सामाजिक कामों से लोगों को बड़ी राहत मिलती है। बाढ़, अकाल और भूकंप से पीड़ित लोगों की मदद परोपकार की भावना से ही हो सकती है। परोपकार को धर्म मानने वाले लोग समाज में आदर पाते हैं। राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध, ईसा आदि ने परोपकार करके ही अपना नाम अमर किया है।
सचमुच, परोपकार ही भगवान की सच्ची पूजा है।
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