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सोमवार, १६ मे, २०२२

मेरे देश की धरती सोना उगले

 

मेरे देश की धरती सोना उगले

 

मेरे देश की धरती सोना उगलेउगले हीरे मोती

मेरे देश की धरती ।

 

बैलों के गले में जब घुँघरू जीवन का राग सुनाते हैं,

ग़म कोसों दूर हो जाता हैखुशियों के कँवल  मुस्काते हैं।

सुन के रहट की आवाज़ेयूँ लगे कहीं शहनाई बजे,

आते ही मस्त बहारों के दुल्हन की तरह हर खेत सजे।

 

जब चलते हैं इस धरती पे हलममता अंगड़ाइयाँ लेती है।

क्यूँ ना पूजें इस माटी को जो जीवन का सुख देती है ।

इस धरती पे जिसने जनम लियाउसने ही पाया प्यार तेरा,

यहाँ अपना पराया कोई नहींहै सब पे है माँ उपकार तेरा।

ये बाग़ है गौतमनानक काखिलते हैं अमन  के फूल यहाँ ।

गांधीसुभाषटैगोरतिलकऐसे हैं चमन  के फूल यहाँ।

रंग हरा हरी सिंह नलवे सेरंग लाल है लाल बहादुर से,

रंग बना बसंती भगत सिंहरंग अमन का वीर जवाहर से ।

 

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