रेलवे स्टेशन पर एक घंटा
मुझे यात्रा करना बहुत अच्छा लगता है। पिछली छुट्टियों में मुझे अपने मित्रों के साथ पुणे जाता था। हम गाड़ी छूट एक घंटा पहले रेलवे स्टेशन पहुँच गए। लोग टैक्सियों, कारों और रिक्शों से उतरकर स्टेशन में प्रवेश कर रहे थे। कुछ यात्रियों ने अपने सामान खुद उठा रखे थे। कुछ यात्रियों के सामान लाल बदाँवाले कुली उठाकर चल रहे थे। टिकट खिड़को पर यात्रियों की कतारें लगी थी। टिकट लेकर हम प्लेटफार्म पर पहुँचे। प्लेटफार्म पर अलग अलग धर्म, जाति, भाषा, उम्र और वेशभूषावाले लोग दिखाई दिए। शीतल जल के प्याक पर यात्रियों की बहुत भीड़ थी। हर यात्री रास्ते में पीने के लिए अपना 'वाटर बैग' भर लेना चाहता था। खाने पीने के सामान और अखबार के स्टालों पर भी लोगों का जमावड़ा था। खिलाने के एक स्टाल पर कई बच्चे खिलौने खरीदने की जिद कर रहे थे। चाय और समोसे के खोमचेवाले यात्रियों के पास आ-आकर 'चाप गरम' और 'चटपटे समोसे को रट लगा रहे थे। तभी एक गाड़ी प्लेटफार्म पर आ पहुंची। लोगों में खलबली मच गई। यह नागपुर जाने वाली गाड़ी थी। लोग अपने अपने सामान लेकर डिब्बों में घुसने लगे। डिब्बे के कुछ यात्रियों में तू-तू... मैं-मैं भी हो रही थी। कई यात्रियों एवं कुलियों में मजदूरी को लेकर कहासुनी हुई। गाड़ी छूटने के पहले का दृश्य बहुत मजेदार था। कहीं जाने की खुशी थी, तो कहीं बिछड़ने का गम था। कोई किसी जाने वाले को ' सँभलकर जाने की हिदायत दे रहा था। कोई पहुँचकर' फोन करने, एस. एम. एस. करने के लिए कह रहा था। कोई 'शुभ यात्रा' कह कर विदा दे रहा था। इतने में पुणे जाने वाली हमारी गाड़ी प्लेटफार्म पर आ पहुँची। हम लोग डिब्बे में जाकर अपनी अपनी सीट पर बैठ गए। मुझे लगा कि मानव जीवन के विविध रूपों को केवल रेलवे स्टेशन पर हो अच्छी तरह देखा जा सकता है। हरा सिग्नल होते ही हमारी गाड़ी पुणे जाने के लिए रवाना हुई।
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